Tuesday 28 June 2011

तनहा ही रहने दे ...


अए जिन्दगी अब मुझको तू तनहा ही रहने दे ...
  मत ढूढ़ कोई हमसफ़र मुझको खुद में ही बहने दे ,
 
  उसकी यादों को भूला के दिल को किया है खाली ,
  अब खाली हूँ तो मुझको खाली ही रहने दे ......
  अए जिन्दगी अब मुझको तू तनहा ही रहने दे ...
 
  दिल के वीराने में जो एक पीर पला करती है ,
    खाली दिल के सन्नाटे में जो एक गूँज उठा करती है ,
  उस अनसुने को अब तू अनसुना ही रहने दे .....

  अए जिन्दगी अब मुझको तू तनहा ही रहने दे ...
  मत ढूढ़ कोई हमसफ़र मुझको खुद में ही बहने दे ,



Sunday 26 June 2011

"बेरुखी"

   बेरुखी---एक क्षण
तू जब पास थी तब लगता था ,तेरी बेरुखी से तन्हाई अच्छी ,
अब जब तन्हाई है तब लगता है ,इस तन्हाई से तेरी बेरुखी अच्छी ,
तेरे आ कर चले जाने से बेहतर था, तेरा न आना,
जलते हुए अरमानों को कुछ यूँ जलाना ,
मुस्करा कर मिलना हमारे दिल से मगर ,
अपना दिल हमसे खाली रखना .


   बेरुखी--- एक पल
उसकी बेरुखी ने हमपे इतना सितम ढाला ,
के होके मजबूर हमने उसकी तस्वीर तक जला डाला ,
सोचा था उसके जाने का गम ना करेंगे ,
अपनी तन्हाई में उसकी तस्वीर साथ रखेंगे ,
उसकी तस्वीर से उसके होने का एहसास पास रखेंगे ,
इसी बहाने दिल को आबाद रखेंगे,पर ऐसा हो ना सका ,
उसके लिए अपनी खुद्दारी खो ना सका ,
उसकी जुदाई में मै देवदास हो ना सका ,
प्यार में रखी उसकी शर्तों को ढो ना सका ,
अपने अरमानों का बलिदान तो था मंज़ूर मुझे ,
पर अपने उसूलों से समझौता कर ना सका ,
उसका इंतज़ार तो था मंज़ूर मुझे ,
पर उसका व्योवहार सह ना सका ,
उसकी बेरुखी से, उसके इंतज़ार में सुकून था ,
पर ये शायद मेरा जूनून था क्योंकि ,
जो इतना चटक था वो मेरे ही दिल का खून था .


     बेरुखी--- एक लम्हा 
तेरी यादों ने हमें अब तक तनहा रखा है ,
समझ नहीं पाते... के अब जीने में क्या रखा है .
तेरी बेरुखी ने हमें दिलजला बना दिया ,
समझ नहीं पाते... अब दिल लगाने में क्या रखा है .
तेरे आ कर चले जाने से दिल की दुनिया उजड गयी ,
समझ नहीं पाते... अब घर बसाने में क्या रखा है .
तेरी आवाज़ों ने हमें अब तक गुंजायमान रखा है ,
समझ नहीं पाते... अब ख़ामोशी में क्या रखा है .
तेरी बेरुखी ने दिल की उमंगें छीन ली ,
समझ नहीं पाते... अब दिल के वीराने में क्या रखा है .
मेरी नीरस मायूसी में तेरे आने से हौसला आ गया था ,
समझ नहीं पाते... तेरे जाने पर अब हौसलों की उडान में क्या रखा है .
तुझे खोने के डर ने हमें अब तक डरा कर रखा है ,
समझ नहीं पाते... अब तुझको पाने में क्या रखा है .


   बेरुखी---एक अरसा
मै तो वही था ,मै तो वहीं हूँ ,
तुने जहाँ छोड़ा मुझे .........,
पाया नहीं कुछ ,कुछ भी खोया नहीं है ,
तेरी बेरुखी से मिला इतना मुझे ........,
तेरी बेरुखी से आजाद हूँ पर ,
तेरी ही यादों में बर्बाद हूँ ,
ये कैसी किस्मत मिली मुझे ........,
ना मै भरा हूँ ना मै खाली हूँ ,
तेरी चाहत ने दिया इतना मुझे .......,
ना ही तू याद है ना ही मै भूला तुझे ,
कैसी ये तेरी चाहत मिली मुझे ........,
ना मै खुद से बेगुनाह हूँ ना मै खुद से गुनहगार हूँ ,
तेरा ये कैसा इंसाफ मिला मुझे ........,
ना चल सका हूँ मै ना ही रुका हूँ मै ,
कैसी ये राह मिली मुझे .........
                                                                                                           " कुमार "

Thursday 16 June 2011

जीने की जिद्द

ठोकरें है हर कदम पे , तो क्या जीना छोड़ देंगे ,...........
मिलती है हार हर कदम पे ,तो क्या लड़ना छोड़ देंगे ,...........

हर कोशिश बदल जाती है मायूशी में ,तो क्या मुस्कुराना छोड़ देंगे ,...........
मय और साकी से है परहेज,तो क्या अपना पैमाना छोड़ देंगे ,...........

जिन्दगी कभी आई नहीं खुल कर मेरी बाँहों में ,
तो क्या जीने का बहाना छोड़ देंगे ,...........

बदनसीबी है अपना मुक्कद्दर,तो क्या नसीब आजमाना छोड़ देंगे ,...........
बेरंग है जिन्दगी का हर पहलू , तो क्या होली मनाना छोड़ देंगे ,...........

असफलताओं से रुंध हैं भले राहें मेरी ,पर ऐ भाग्यविधाता
मेहनती हाथों के माथों की लकीरें ,क्या पसीना बहाना छोड़ देंगी ............
                                                                                              " कुमार "

Wednesday 8 June 2011

  08jun2011
   एक खुशखबर ...,कुछ साल पहले कहीं दीवार पर लगे पोस्टर में पढ़ा था,
   "नब्बे प्रतिशत बेईमान,फिर भी मेरा भारत महान "ये शायद किसी फिल्म की टैग लाइन थी.
   लेकिन ये एक सच्चाई भी थी.लेकिन कल जब "लाइव इंडिया"(news channel) पर अन्ना हजारे
   जी का संवाद चल रहा था तो नीचे एक लाइन आ रही थी के "देश में 54 प्रतिशत लोग बेईमान है".

Monday 6 June 2011

उदासी

शहर की भीड़ बासी सी लगती है,गाँव की ख़ामोशी उदासी सी लगती है ,

जिन्दगी की भागमभाग में जिन्दगी बदहवासी सी लगती है ,
बढती भीड़ में अपनी मौजूदगी गुमशुदा सी लगती है ,
खुल कर जीने की तड़प में,हर जिम्मेदारी बेवजह सी लगती है ,
एक मंजिल तक पहुँच कर ,दुसरे मंजिल को पाने कि चाह में ,
मंजिलों की तादाद अच्छी खासी सी लगती है ,

इन्सान को इन्सान से ही है नफरत ,
इंसानियत की बात अब गुस्ताखी सी लगती है ,
स्वार्थ भरे माहौल में ,सामाजिक मुद्दों की बातें भी अब सियासी सी लगती है ,
आधुनिकता की अंधी दौड़ में ,पहाड़ों,पेड़ों की हवा भी जहरीली सी लगती है ,
प्रदुषण भरे वातावरण में ,अब तो नाश्ते में भी दवा लगती है ,
महंगाई और मिलावट ने, अंतर मिटा दिया गाँव और शहर का ,
स्वस्थ और लम्बी उम्र की कामना अब बददुआ सी लगती है ,
सुरक्षा की बात ना करो कही भी कुछ भी हो जाये ,
स्वर्गवास होने में अब कहाँ 'काशी' लगती है ,
                                               " कुमार "

आज मुझे राजनीती से नफरत हो गयी.

 आज मुझे राजनीती से नफरत हो गयी.मै समझता हूँ बहुत से लोग राजनीती पसंद नहीं करते,लेकिन  मै एक भारतीय हूँ.मुझे मेरा भारत पसंद है,इसीलिए मै भारत की राजनीती को भी पसंद करता हूँ.  इसीलिए भारत से जुडी हर चीज मुझे पसंद है.मै ये भी समझता हूँ की राजनीती गन्दी होती है ,लेकिन  मै ये भी जानता हूँ की अगर अच्छी राजनीती हो तो देश आगे बढता है,देश प्रगति करताहै, देशवासी  सुखी होते हैं.बस इसी अच्छी राजनीती के विश्वास पर ही मै राजनीती की तरफ आशावान नजरों से  भारत को लेकर देखता था.क्योंकि बिना लोकतंत्र की राजनीती से देश कार्यान्वित नहीं हो सकता, देश  नहीं चल सकता. इसीलिए सोचता था की एक जागरूक भारतीय नागरिक होने के नाते हमें राजनीती  से मुंह फेरने के बदले एक अच्छी राजनीती,देशनीति की तरफ हमेशा आशावान रहना चहिये. बस  यही एक विचार था जो मुझे अपने देश की राजनीती से जुड़ने की प्रेरणा देता था.लेकिन आज की  दुर्भाग्यपूर्ण घटना,आज की गन्दी राजनीती को देखकर,उसके एहशाश से भी मुझे घृणा हो गयी है.  आज मुझे राजनीती से नफरत हो गयी.

   मुझे किसी राजनितिक पार्टी से लगाव नहीं,लेकिन मै भारतीय राजनीती ,अपने देश की राजनीती में विश्वास  कर उससे प्यार करना चाहता हूँ,क्योंकि मुझे लगता है हम सब भारतवासी चाहते है के देश आगे बढे .किसी की  नक़ल करके नहीं,किसी के दिखावे को देखकर नही,बल्कि भारत विशुद्ध रूप से भारतीय बनकर,भारतवर्ष बन  कर आगे बढे.दुनिया में चमके .भारत एक ऐसा संपन्न देश बने जो आर्थिक ही नहीं, सामाजिक, पारिवारिक  और नैतिक मूल्यों में संपन्न हो कर दुनिया को राह दिखाए.सिर्फ ऐशो-आराम ही नहीं बल्कि अध्यात्मिक  मूल्यों में भी अग्रगण्य बने .
    एक ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ व्यक्ति ही नहीं बल्कि हर भारतवासी की अभिव्यक्ति बनकर,उनकी जुबान बनकर,  भ्रस्टाचार के विरूद्ध मजबूत कानून लाने के लिए सत्याग्रह करता है .एक ऐसा व्यक्ति जो काले-धन के खिलाफ अनशन  करता है,वो धन जो हर भारतवासी की मेहनत की कमाई का हिस्सा है.वो धन जो अगर देश में वापस आ जाये  तो उससे बहुत से गाँव आदर्श-गाँव बन सकते है,इससे भारत को मजबूती मिलेगी.तो ये नेता उसके खिलाफ गन्दी राजनीती करते है,उन पर बलप्रयोग कर,उनका मजाक बनाते है.और दुसरे नेता,पार्टियाँ अपनी-अपनी  रोटियां सेकने के लिए आगे आ जाते हैं .
 मुझे लगता है की अब हर भारतवासी ये समझ गया होगा की ये नेता गन्दी राजनीती कैसे करते हैं.ये व्यक्ति  जनता  की बात लेकर इन नेताओं के सामने गए है,वो भी कोई नेता बनकर नहीं बल्कि एक भारतीय समाज  बनकर क्योंकि हर भारतवासी ये कहना चाहता है.हर भारतवासी ने भले नेता चुनकर दिए हों,लेकिन वो सब  गन्दी राजनीती के शिकार लगते है.इसीलिए हर भारतवासी नेता के बदले जननायक की उम्मीद कर रहा था जो उनकी बात सरकार तक पहुंचाए .अब अगर ये भारतवासी,हर भारतवासी की बात सरकार से करवाना चाहते है  तो ये नेता इसे समझने के बदले गन्दी राजनीती कर रहे है .
  मुझे लगता है की कैसे भी मजबूत जन -लोकपाल -बिल बन जाना चाहिए,कैसे भी कालाधन भारत में वापस  आ जाना चाहिए .
       क्योंकि ये किसी व्यक्ति की नहीं हर भारतवासी की मांग है.मै अगर एक जागरूक भारतीय और  भारतवासी होने के नाते अपना पक्ष रखू तो मुझे लगता है बस ये हो जाना चाहिए था.क्योंकी हम ये  उम्मीद कत्तई नहीं कर सकते की अगर मौजूदा सरकार ने ये काम नहीं किया तो कोई दूसरी सरकार ये  काम करेगी,क्योंकि वो भी गन्दी और स्वार्थी राजनीती करने से बाज नहीं आएगी.अगर ये काम हो  जाये तो मुझे लगता है के अभी से ही इन गंदे राजनीतिज्ञों का शुद्धिकरण होना चालू हो जायेगा,और  देश के लिए कुछ अच्छा हो जायेगा.इसलिए हर देशवासी अब येही चाहता है और येही चाहेगा की इन  सामाजिक और आर्थिक मूद्दों पर गन्दी राजनीती ना हो कर बस ये काम(जन -लोकपाल  -बिल,कालाधन) जल्दी से जल्दी हो जाये.क्योंकि अगर गन्दी राजनीती हुई और अगर ये काम अभी  ना हुआ तो शायद ये कभी ना हो ,या फिर साठ साल ना बीत जाये .........