Sunday 22 May 2011

शराब-का-पैमाना

     शराब नहीं शराब की बू से नफरत है ,शराबियों के हजूम से नफरत है ,

     शराब के पैमाने से नहीं ,शराब के मैखाने से नफरत है ,
     शराब की खुमारी से नहीं , उसकी बीमारी से नफरत है ,

     शराब के साहिल पे बैठ कर पीने से नहीं ,
     शराब की महफीलों से नफरत है ,

     शराब के रोजगार से नहीं,
      उसके बढते व्यापार से,उसके इश्तिहार से नफरत है,

     दो घूँट पी कर चहकने से नहीं ,
     पूरी बोतल खाली कर बहकने से नफरत है ,

     प्यार में मिली बेरुखी हमें इतनी ,
     के सोचा बन जाये देवदास मगर ,

     देवदास की दीवानगी से नहीं मगर ,
     उसके शराब में डूब कर मर जाने से नफरत है.
                                                                         " कुमार "

Saturday 14 May 2011

नेता

     नेता मतलब बिना पेंदी का लोटा ,

     जब मागना हो वोट
     तब सिर के बल लोटा ,

     जीत गया जब चुनाव
     तब फिर कभी नहीं लौटा ,

     खा गया जनता का पैसा
     तो फिर कभी न सका उसे वो लौटा ,

     झूठे वादे कर जनता से देते हैं ये धोखा ,
     जनता के पैसों को जोंक की तरह सोखा ,

     नेता के पिछवाड़े पे बरसाओ सोंटा ,

     फिर भी नेता कहते हम कभी नहीं सुधरेंगे
     चाहे इनपे लगाओ मकोका या पोटा,
                                                                                 " कुमार "



Tuesday 10 May 2011

गाँव-शहर


     शहर में कितनी भीड़ -भाड़ है ,
     गाँव में सूनी पड़ी चौपाल है ,
     शहरों में कंक्रीटों का बढ रहा जंगल है ,
     गाँवों में पेड़ों की हो रही उमर कम है ,
     यहाँ ऊँची ईमारतों का जाल है , 
     गाँव में वही घास -फूस की छत और पुआल है ,
     गाँव कहते किसे है ,जहाँ किसान रहते है! ,
     जमींदार जो थे वो तो कब के चल गए ,
     शहरों-कस्बों में आके दलाल बन गए ,
     दलाल बन के और मालामाल हो गए ,
     किसान ,किसान अब भी वहीं है ,
     अपने खून पसीने से सींच रहा जमीं है ,
     किसान की औलादें अब नहीं बनना चाहते किसान ,
     वो अब उनके खलिहानों में बस बनाते हैं  मकान ,
     या फिर करतें हैं गाँव से पलायन ,
     शहरों की चका-चौंध में ढूंढ़ते है जीवन ,
     शहरों में ही क्यूँ अमीरी का बोलबाला है ,
     गरीबी और क़र्ज़ ने क्यूँ किसानो को दबा डाला है?
     सुविधा,सम्पन्नता,समृधी कब किसानों के कदम चूमेगी ,
      हमारी सरकारों के कानो में कब इस बात की जूं रेंगेगी.

                                                                  " कुमार "