Tuesday 10 May 2011

गाँव-शहर


     शहर में कितनी भीड़ -भाड़ है ,
     गाँव में सूनी पड़ी चौपाल है ,
     शहरों में कंक्रीटों का बढ रहा जंगल है ,
     गाँवों में पेड़ों की हो रही उमर कम है ,
     यहाँ ऊँची ईमारतों का जाल है , 
     गाँव में वही घास -फूस की छत और पुआल है ,
     गाँव कहते किसे है ,जहाँ किसान रहते है! ,
     जमींदार जो थे वो तो कब के चल गए ,
     शहरों-कस्बों में आके दलाल बन गए ,
     दलाल बन के और मालामाल हो गए ,
     किसान ,किसान अब भी वहीं है ,
     अपने खून पसीने से सींच रहा जमीं है ,
     किसान की औलादें अब नहीं बनना चाहते किसान ,
     वो अब उनके खलिहानों में बस बनाते हैं  मकान ,
     या फिर करतें हैं गाँव से पलायन ,
     शहरों की चका-चौंध में ढूंढ़ते है जीवन ,
     शहरों में ही क्यूँ अमीरी का बोलबाला है ,
     गरीबी और क़र्ज़ ने क्यूँ किसानो को दबा डाला है?
     सुविधा,सम्पन्नता,समृधी कब किसानों के कदम चूमेगी ,
      हमारी सरकारों के कानो में कब इस बात की जूं रेंगेगी.

                                                                  " कुमार "

No comments:

Post a Comment