भटकी हुई राहों से निकला हूँ ,
गर्द हवाओं से निकला हूँ ,
गम की फिजाओं से निकला हूँ ,
टूटे दिल की आहों से निकला हूँ ,
गर्द हवाओं से निकला हूँ ,
गम की फिजाओं से निकला हूँ ,
टूटे दिल की आहों से निकला हूँ ,
गिरते-गिरते सम्हला हूँ ,सम्हल कर भी गिरा हूँ ,
कुछ खो कर पाया है ,कुछ पा कर खोया है ,
अँधेरे वक़्त में भी हौसले को संजोया है ,
खुद ही खुद को समझाया है ,
तब जीने का सलीका पाया है .
तब जीने का सलीका पाया है .
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