ये मन तू ठहरता क्यूँ नहीं ,
जब भी भर जाता है तो सम्हलता क्यूँ नहीं ,
दुःख ,ख़ुशी ,अवसाद ,प्रतिशाद
इतनी किस्मो से होकर भी तू बदलता क्यों नहीं ,
भटकने,बहकने,गिरने से तुझे कितना सम्हाला मैंने ,
मुझे तो कोई सम्हालता भी नहीं ,
तू रहता है भीतर,मगर भागता है बाहर,
तू खुद में ही सिमटता क्यूँ नहीं ,
इस दुनिया में इतना भटकने के बाद भी ,
तू प्रभु में रमता क्यों नहीं ,
जब भी भर जाता है तो सम्हलता क्यूँ नहीं ,
दुःख ,ख़ुशी ,अवसाद ,प्रतिशाद
इतनी किस्मो से होकर भी तू बदलता क्यों नहीं ,
भटकने,बहकने,गिरने से तुझे कितना सम्हाला मैंने ,
मुझे तो कोई सम्हालता भी नहीं ,
तू रहता है भीतर,मगर भागता है बाहर,
तू खुद में ही सिमटता क्यूँ नहीं ,
इस दुनिया में इतना भटकने के बाद भी ,
तू प्रभु में रमता क्यों नहीं ,
तू चंचल भी है,वेगवान भी है ,
पर तेरा एक दूसरा पहलु भी है ,
तू कभी-कभी बहुत कुछ सह लेता है ,
मगर किसी से कुछ कहता भी नहीं .
तू कभी-कभी बहुत कुछ सह लेता है ,
मगर किसी से कुछ कहता भी नहीं .
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